कभी घाटता ,कभी बढ़ता है तो कभी गुम हो जाता है
न जाने क्योँ मेरे जैसा है, क्या मुझसे उसका नाता है
जितनी मिलती है उसमे खुश, नहीं बड़े उसके सपने हैं
रौशनी उधार कि है , बस दाग ही हैं जो उसके अपने हैं
महफिलें रोज़ तारों कि देखता है वोह तनहा सा
सुबह होते ही छुप जाता है डरा सा और सहमा सा
मन में तामस
विचारों में आक्रोश
माथे पे बल
आँखों में विषाद
क्रोधित स्वभाव
होटों पे असत्य
मिथ्या स्व(अभिमान)
तेज रफ़्तार जिंदगी
उन्नती की लालसा
नैतिकता से समझौता
कृत्रिम खुशियाँ
औपचारिक रिश्ते
छल ,माया, भ्रम
सभ्य समाज.........